Satya ki jeet | Hindi kahani

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Satya ki jeet | Hindi kahani
Satya ki jeet | Hindi kahani
Satya ki jeet | Hindi kahani। किसी जमाने में एक राजा था। वह बड़ा नेक था। अपनी प्रजा की भलाई के लिए प्रयत्न करता रहता था। उसने अपने राज्य में घोषणा कराई थी शाम तक बजाय में किसी की कोई चीज नहीं बचें। अगर बचेगी तो स्वयं उसे खरीद लेगा, इसलिए शाम को जो भी चीज बच जाती, वह उसे खरीद लेता।

संयोग से एक दिन बजार में एक आदमी शनि की मूर्ति बेचने आया। शनि की मूर्ति को भला भला अपने घर में कौन रखता?

किसी ने उसे नहीं खरीदा । अपने वचन के अनुसार राजा ने उसे खरीद लिया और अपने घर में रख लिया। रात हुई राजा की आंख लगी ही थी की अचानक उसके सामने एक मूर्ति आ खड़ी हुई। राजा ने पूछा:- 'तुम कौन हो' 

वह बोली:-'राजन, मैं लक्ष्मी हूं। तुम्हारे राज्य से जा रही हूं, क्योंकि तुमने शनि को अपने यहां स्थान दे दिया है।'

राजा ने कहा:- मैंने अपने धर्म का पालन किया हैं। सत्य की रक्षा की हैं। तुम जाना ही चाहती हो तो चली जाओ। 

उसके जाने के थोड़ी देर बाद राजा के सामने एक दूसरी मूर्ति आई । Satya ki jeet

राजा ने पूछा:- तुम कौन हो?

वह मूर्ति बोली:-मै धर्म हूं, जहां शनि का वास रहता है, मैं वहां नहीं रह सकता।

राजा ने उसे भी वही उत्तर दिया, जो लक्ष्मी को दिया था।

फिर तीसरी मूर्ति प्रकट हुई।

राजा ने पूछा:- तुम कौन हो?

उत्तर मिला:- मैं सत्य हूं, तुमने शनि को आसरा दिया है। इसलिए मैं जा रहा हूं।

राजा ने उसे पकड़ लिया और बोला:-'मै तुम्हें नहीं जाने दूंगा। तुम्हारे लिए ही तो मैंने लक्ष्मी को छोड़ा, धर्म को छोड़ा था।
अंत: तुम नहीं जा सकते।

यह सुनकर सत्य चुप हो गया और वह नहीं गया। उसके रूकने पर लक्ष्मी और धर्म भी लौट आए।

आखिरकार सत्य ही जीता।Satya ki jeet | Hindi kahani

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