Tenali rama stories in hindi | चतुर तेनालीराम | hindi kahaniya
Tenali rama stories in hindi- स्वर्ग की खोज
Tenali rama stories in hindi |
Tenali rama stories in hindi|महाराज कृष्णदेव राय अपने बचपन में सुनी कथा अनुसार यह विश्वास करते थे कि संसार ब्रह्मांड की सबसे उत्तम और मनमोहक जगह स्वर्ग है। एक दिन अचानक महाराज को स्वर्ग देखने की इच्छा उत्पन्न हुई इसलिए दरबार में उपस्थित मंत्रियों से पूछते हैं, बताइए स्वर्ग कहां है?
सारे मंत्रीगण सिर खुजाते जाते बैठे रहते हैं पर चतुर तेनालीराम महाराज कृष्णदेव राय को स्वर्ग का पता बताने का वचन देते हैं और इस काम के लिए 10,000 सोने के सिक्के और 2 माह का समय मांगते हैं
महाराज कृष्ण देव राय तेनालीराम को सोने के सिक्के और 2 माह का समय दे देते हैं और शर्त रखते हैं की अगर तेनालीराम ऐसा ना कर सके तो उन्हें कड़ा दंड दिया जाएगा। अन्य दरबारी तेनालीराम की कुशलता से काफी जलते हैं। और इस बात से मन ही मन बहुत खुश होते हैं कि तेनालीराम स्वर्ग नहीं खोज पाएगा।
2 माह की अवधि बीत जाती है, महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम को दरबार में बुलाते हैं। तेनालीराम कहते हैं की उन्होंने स्वर्ग ढूंढ लिया है और वे कल सुबह स्वर्ग देखने के लिए प्रस्थान करेंगे।
अगले दिन तेनालीराम, महाराज कृष्णदेव राय और उनके खास मंत्री गणों को एक सुंदर स्थान पर ले जाते हैं। जहां खूब हरीयाली, चहचहाते पक्षी और वातावरण को शुद्ध करने वाले पेड़-पौधे होते हैं। जगह का सौंदर्य देखकर कृष्ण देव राय अति प्रसन्न होते हैं। पर उनके अन्य मंत्री गण स्वर्ग देखने की बात महाराज को याद दिलाते हैं।
महाराज कृष्णदेव राय भी तेनालीराम से उसका वादा निभाने को कहते हैं। उस के जवाब में तेनालीराम कहते हैं कि जब पृथ्वी पर फल, फूल पेड़, पौधे, अनंत प्रकार के पशु , पक्षी और अद्भुत वातावरण और अलौकिक सौंदर्य हैं। फिर स्वर्ग की कामना क्यो? जब की स्वर्ग जैसी कोई जगह है भी इसका कोई प्रमाण नहीं है।
महाराज कृष्णदेव राय को चतुर तेनालीराम की बात समझ आ जाती हैं और वो उनकी प्रसंशा करते हैं। बाकी मंत्री जलन के मारे महाराज को दस हजार सोने के सिक्के के याद दिलाते हैं।तब महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से पूछते हैं कि उन्होंने सिक्कों का क्या किया?
तब तेनालीराम कहते हैं कि वह तो उन्होंने खर्च कर दिए।
तेनालीराम कहते हैं कि आपने जो दस हजार सोने के सिक्के दिए थे उनसे मैंने इस जगह से उत्तम पौधे और उच्च कोटि के बीज खरीदें हैं। जिनको हम अपने राज्य विजयनगर में प्रत्यर्पित करेंगे । ताकि हमारा राज्य भी इस राज्य के समान सुन्दर और आकर्षक बन जाए।
महाराज, तेनालीराम की इस बात से और प्रसन्न होंते हैं और तेनालीराम को ढेरों ईनाम देते हैं।
Tenali raman stories in hindi-अरबी घोड़ा
Tenali raman stories in hindi |
Tenali rama stories in hindi| महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक दिन एक अरब का व्यापारी घोड़े बेचने आया। वह अपने घोड़ों का बखान करके महाराज कृष्णदेव राय को सारे घोड़े खरीदने के लिए राजी कर लेता है तथा अपने घोड़े बेच जाता है।
महाराज की घुड़साल में इतने अधिक घोड़े हो जाते हैं कि उन्हें रखने की जगह नहीं बचती,इसलिए महाराज के आदेश पर बहुत से घोड़ों को विजय नगर के आम नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को 3 महीने तक देखभाल के लिए दे दिया जाता है।हर एक देखभाल करने वाले को घोड़ों के पालन खर्च और प्रशिक्षण के लिए प्रति माह एक सोने का सिक्का दिया जाता है। विजय नगर के सभी नागरिकों की तरह चतुर तेनालीराम को भी दिया गया। तेनालीराम ने घोड़ा को घर ले जाकर घर के पीछे एक छोटी सी घुड़साल बनाकर बांध दिया और घुड़साल की नन्ही खिड़की से उसे हर रोज थोड़ी मात्रा में चारा खिलाने लगे। बाकी लोग भी महाराज कृष्णदेव राय की सौंपी गई जिम्मेदारी को निभाने लगे। महाराज नाराज ना हो जाएं और उन पर क्रोधित हो कोई दन्ड ना दें; इस भाई से सभी लोग अपना पेट काट काट कर भी घोड़े को उत्तम चारा खरीद कर खिलाने लगे।
ऐसा करते-करते 3 महीने बीत जाते हैं।कई दिन सारे नागरिक घोड़ों को लेकर महाराज कृष्णदेव राय के समक्ष इकट्ठा हो जाती है पर तेनालीराम खाली हाथ आते हैं। राजगुरु तेनालीराम के घोड़ा ना लाने की वजह पूछते हैं। तेनालीराम उत्तर में कहते हैं कि घोड़ा काफी बिगड़ैल और खतरनाक हो चुका है और वह खुद घोड़े के समीप नहीं जाना चाहते हैं। राजगुरु,महाराज कृष्णदेव राय को कहते हैं कि तेनालीराम झूठ बोल रहे हैं।महाराज कृष्णदेव राय सच्चाई का पता लगाने के लिए तेनालीराम के साथ राजगुरु को भेजते हैं।
राजगुरु जैसे ही खिड़की के अंदर झांकते हैं, घोड़ा लपक कर उनकी ढाड़ी पकड़ लेता है। लोग जमा होने लगते हैं।काफी मशक्कत करने के बाद भी भूखा घोड़ा राजगुरु की दाढ़ी नहीं छोड़ता है। अंततः कुटिया तोड़कर तेज हथियार से राजगुरु की दाढ़ी काटकर उन्हें घोड़े के चंगुल से छुड़ाया जाता है।परेशान राजगुरु और चतुर तेनालीराम भूखे घोड़े को लेकर राजा के पास पहुंचते हैं।
घोड़े की दुबली पतली हालत देखकर महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इसका कारण पूछते हैं। तेनालीराम कहती है कि मैं घोड़े को प्रतिदिन थोड़ा सा चारा ही देता था, जिस तरह आप की गरीब प्रजा थोड़ा भोजन करके गुजारा करती हैं। और आवश्यकता से कम सुविधा मिलने के कारण घोड़ा और व्यथित और बिगड़ैल होता गया ठीक वैसे ही जैसे कि आपकी प्रजा परिवार पालन की जिम्मेदारी के अतिरिक्त, घोड़ों को संभालने के बोझ से त्रस्त हुई।
राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना होता है। उन पर अधिक बोझ डालना नहीं। आपके दिए हुए घोड़े पालने के कार्य-आदेश से तो घोड़े बलवान हो गये पर आपकी प्रजा दुर्बल हो गई। महाराज कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यह बात समझ आ जाती है, वह तेनालीराम की प्रशंसा करते हुए उन्हें पुरस्कार देते हैं।
हम इसी तरह आपके लिए पंचतंत्र की कहानियां, hindi kahaniya, moral stories, लाते रहेंगे।
महाराज की घुड़साल में इतने अधिक घोड़े हो जाते हैं कि उन्हें रखने की जगह नहीं बचती,इसलिए महाराज के आदेश पर बहुत से घोड़ों को विजय नगर के आम नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को 3 महीने तक देखभाल के लिए दे दिया जाता है।हर एक देखभाल करने वाले को घोड़ों के पालन खर्च और प्रशिक्षण के लिए प्रति माह एक सोने का सिक्का दिया जाता है। विजय नगर के सभी नागरिकों की तरह चतुर तेनालीराम को भी दिया गया। तेनालीराम ने घोड़ा को घर ले जाकर घर के पीछे एक छोटी सी घुड़साल बनाकर बांध दिया और घुड़साल की नन्ही खिड़की से उसे हर रोज थोड़ी मात्रा में चारा खिलाने लगे। बाकी लोग भी महाराज कृष्णदेव राय की सौंपी गई जिम्मेदारी को निभाने लगे। महाराज नाराज ना हो जाएं और उन पर क्रोधित हो कोई दन्ड ना दें; इस भाई से सभी लोग अपना पेट काट काट कर भी घोड़े को उत्तम चारा खरीद कर खिलाने लगे।
ऐसा करते-करते 3 महीने बीत जाते हैं।कई दिन सारे नागरिक घोड़ों को लेकर महाराज कृष्णदेव राय के समक्ष इकट्ठा हो जाती है पर तेनालीराम खाली हाथ आते हैं। राजगुरु तेनालीराम के घोड़ा ना लाने की वजह पूछते हैं। तेनालीराम उत्तर में कहते हैं कि घोड़ा काफी बिगड़ैल और खतरनाक हो चुका है और वह खुद घोड़े के समीप नहीं जाना चाहते हैं। राजगुरु,महाराज कृष्णदेव राय को कहते हैं कि तेनालीराम झूठ बोल रहे हैं।महाराज कृष्णदेव राय सच्चाई का पता लगाने के लिए तेनालीराम के साथ राजगुरु को भेजते हैं।
राजगुरु जैसे ही खिड़की के अंदर झांकते हैं, घोड़ा लपक कर उनकी ढाड़ी पकड़ लेता है। लोग जमा होने लगते हैं।काफी मशक्कत करने के बाद भी भूखा घोड़ा राजगुरु की दाढ़ी नहीं छोड़ता है। अंततः कुटिया तोड़कर तेज हथियार से राजगुरु की दाढ़ी काटकर उन्हें घोड़े के चंगुल से छुड़ाया जाता है।परेशान राजगुरु और चतुर तेनालीराम भूखे घोड़े को लेकर राजा के पास पहुंचते हैं।
घोड़े की दुबली पतली हालत देखकर महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इसका कारण पूछते हैं। तेनालीराम कहती है कि मैं घोड़े को प्रतिदिन थोड़ा सा चारा ही देता था, जिस तरह आप की गरीब प्रजा थोड़ा भोजन करके गुजारा करती हैं। और आवश्यकता से कम सुविधा मिलने के कारण घोड़ा और व्यथित और बिगड़ैल होता गया ठीक वैसे ही जैसे कि आपकी प्रजा परिवार पालन की जिम्मेदारी के अतिरिक्त, घोड़ों को संभालने के बोझ से त्रस्त हुई।
राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना होता है। उन पर अधिक बोझ डालना नहीं। आपके दिए हुए घोड़े पालने के कार्य-आदेश से तो घोड़े बलवान हो गये पर आपकी प्रजा दुर्बल हो गई। महाराज कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यह बात समझ आ जाती है, वह तेनालीराम की प्रशंसा करते हुए उन्हें पुरस्कार देते हैं।
हम इसी तरह आपके लिए पंचतंत्र की कहानियां, hindi kahaniya, moral stories, लाते रहेंगे।
mujhe aapki kahaniya bhut achi lgi. kya aap Panchatantra stories with pictures and moral in hindi bhi likhte ho? agar ha to mujhe zroor btaiyega.
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जवाब देंहटाएंTechnicalrab.com